चाय बेचने से लेकर 332 करोड़ की कान्तारा बनाने तक की संघर्ष का नाम है ऋषभ शेट्ठी
एक वक़्त था जब जिंदगी चलाने के लिए टॉयलेट पेपर कंपनी में सेल्स की जॉब करना पड़ा था
लेकिन दिल में बस कहानी सुनाने का एक ही जूनून था जो आज कान्तारा के रो रूप में है
जब सपने सच होते हैं जो संघर्ष छोटे लगने लगते हैं. कान्तारा उन्ही सपनो की उड़ान थी .
ऋषभ शेट्टी को अपना पहला ब्रेक पाने में 10 साल लग गए.
फिर आई 2016 में किरिक पार्टी जिसने वो मुकाम दिया जो आज तक कायम है
कान्तारा रिलीज़ के टाइम किसी ने नहीं सोचा था की ये फिल्म ब्लॉकबस्टर साबित होगी
लेकिन आपमें अगर जूनून है कुछ कर गुजरने का तो फिर कोई नहीं रोक सकता